फिल्म 'वाइल्ड वाइल्ड पंजाब' की समीक्षा

फिल्में समाज का आईना होती हैं। वे हमें समाज की सच्चाई दिखाई देती हैं और समस्याओं की तस्वीर खींचती हैं। हालांकि, जब फिल्में इन समस्याओं को गंभीरता से लेने की बजाए उनका मजाक उड़ाती हैं, तो उनका असर उल्टा पड़ता है। ऐसा ही कुछ हुआ है नई फिल्म 'वाइल्ड वाइल्ड पंजाब' के साथ।

निर्देशन और लेखन

यह फिल्म सिमरप्रीत सिंह द्वारा निर्देशित है और संदीप जैन, लव रंजन, और हरमन वडाला द्वारा लिखी गई है। फिल्म में सनी सिंह, मंजोत सिंह, वरुण शर्मा, जस्सी गिल, पत्रलेखा पॉल, इशिता राज और अंजुम बत्रा ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। यद्यपि ये सभी कलाकार अपने आप में प्रतिभाशाली हैं, परंतु इस फिल्म में उनका प्रदर्शन निराशाजनक है।

फिल्म की पटकथा कमजोर है और महत्वपूर्ण मुद्दों को मजाक में बदलने की क्षेत्र में फहीम कदम उठाती है। यह फिल्म उन मुद्दों का मज़ाक उड़ाने का प्रयास करती है जिन पर समाज को गंभीरता से बातें करनी चाहिए, जैसे कि आत्महत्या, स्त्री-द्वेष, हिंसा, दहेज और तथाकथित दूषित पारिवारिक संबंध।

कहानी का सार

फिल्म की कहानी खान्ने के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे उसके दोस्तों द्वारा अपने ब्रेकअप का सामना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वे उसे पंजाब की यात्रा पर जाने के लिए कहते हैं ताकि वह अपने ब्रेकअप से उबर सके। इस कहानी में, किसी की व्यक्तिगत त्रासदी को कॉमेडी के माध्यम से हल्कापन प्रदान करने की कोशिश की गई है, जो किसी तरह से दर्शकों के बीच सही तार नहीं छूती।

अभिनय और किरदार

सनी सिंह, मंजोत सिंह, वरुण शर्मा और जस्सी गिल के किरदारों में कोई खास गहराई नहीं है। वे केवल सतही तरीके से निभाए गए हैं और उनकी कहानी में कोई मजबूती नहीं है। पात्रलेखा पॉल, इशिता राज और अंजुम बत्रा के द्वारा निभाए गए किरदार भी अपर्याप्त और कमजोर हैं।

इन अभिनेताओं से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन वे इन किरदारों के कारण अपने करियर में कोई मील का पत्थर नहीं छोड़ पाए। अभिनय में कमी और स्क्रिप्ट की गलतियों के कारण फिल्म दर्शकों को जोड़ने में फेल हो गई है।

गंभीर विषयों का मजाक

फिल्म में आत्महत्या, स्त्री-द्वेष, हिंसा, दहेज और पारिवारिक विवाद जैसे गंभीर मुद्दों को एक मज़ाक के रूप में दिखाया गया है। इन मुद्दों को हल्के में लेना और उन पर हंसने का प्रयास करना किसी भी तरह से सही नहीं है। यह दर्शकों के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है।

फिल्म गंभीर मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेती और उन्हें ठिठोलियों और मजाक में बदल देती है। यह समाज को ना तो शिक्षित करती है और ना ही उसे वास्तव में इन मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित करती है।

समाज पर प्रभाव

इस प्रकार की फिल्में समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। समाज के प्रभावित करने वाले मुद्दों का मजाक बनाना और उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में न दिखाना, दर्शकों के लिए गलत संदेश भेज सकता है।

इस फिल्म का असर यह है कि दर्शक इन गम्भीर मुद्दों को हल्के में लेने लग सकते हैं, और इससे समाज में उन मुद्दों को लेकर संवेदनशीलता कम हो सकती है।

निष्कर्ष

यह फिल्म न केवल घटिया निष्पादन का उदाहरण है, बल्कि यह सामाजिक चिंता के मुद्दों को मजाक में बदलाने का एक गलत प्रयास भी है। 'वाइल्ड वाइल्ड पंजाब' एक 필र के तौर पर नहीं खड़ी हो पाई और न ही इसे देखकर किसी को संवेदनशील बनाया जा सका। यह फिल्म दर्शकों को निराश करती है और इसे देखने का समय बर्बाद करने जैसा है।