क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे संविधान में कोई ऐसा प्रावधान है जो किसी को स्कूल या कॉलेज खोलने की आज़ादी देता है? वही है अनुच्छेद 30. यह वह धारा है जो अल्पसंख्यक और धार्मिक संस्थानों को अपनी शैक्षिक संस्था बनाने, चलाने और नियंत्रित करने का अधिकार देती है.
सरल शब्दों में इसका मतलब है – यदि आप किसी धर्म या भाषा के समूह से जुड़े हैं तो आप अपना स्कूल या कॉलेज बना सकते हैं बिना सरकार की अनुमति के डर के. लेकिन इस अधिकार को इस्तेमाल करने का तरीका संविधान ने साफ़ लिखा है: कोई भी प्रतिबंध नहीं, सिवाय उस स्थिति के जहाँ सार्वजनिक हित में ठोस कारण हो.
बहुतेरे केसों में अनुच्छेद 30 को अदालतों ने बहुत ही बारीकी से देखा है. उदाहरण के तौर पर, कुछ राज्य सरकारें निजी धार्मिक स्कूलों की फीस बढ़ाने या उनके पाठ्यक्रम बदलने की कोशिश करती हैं, तो उन पर अनुच्छेद 30 के तहत चुनौती दी जाती है. हालिया समाचार में भी कई बार इस धारा का उल्लेख हुआ है जब किसी संस्था को सरकारी नियमों से बचते हुए अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने की जरूरत पड़ी.
अगर आप स्कूल खोलना चाहते हैं और आपके पास समुदाय का समर्थन है, तो अनुच्छेद 30 आपका बॅकअप है. लेकिन याद रखें, यह अधिकार असीमित नहीं है. सरकार तब तक हस्तक्षेप कर सकती है जब सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा या समानता के सिद्धांत खतरे में हों.
अनुच्छेद 30 का एक बड़ा फायदा यह भी है कि यह शिक्षा को विविध बनाता है. अलग‑अलग समुदायों की अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ी पढ़ाई बच्चों को मिलती है, जिससे सामाजिक समरसता बढ़ती है.
हालांकि, इस धारा के दुरुपयोग की संभावना भी रहती है. कभी‑कभी बड़े निजी संस्थान अपने आर्थिक लाभ के लिए अनुच्छेद का इस्तेमाल करके नियमों से बचने की कोशिश करते हैं. इसलिए न्यायालय लगातार देख रहा है कि कौन सही मायनों में अल्पसंख्यकों या धार्मिक समूहों का प्रतिनिधित्व कर रहा है.
अगर आप इस अधिकार को लेकर उलझन में हैं, तो सबसे पहले स्थानीय शिक्षा विभाग या कानूनी सलाहकार से बात करें. वे आपको बताएंगे कि क्या आपके पास पर्याप्त समर्थन है और किन शर्तों पर आप स्कूल खोल सकते हैं.
संक्षेप में, अनुच्छेद 30 हमारे लोकतंत्र की वह रीढ़ है जो विविधता को संरक्षित करती है और हर समुदाय को अपने बच्चों की शिक्षा के लिए स्वतंत्र रूप से काम करने का मौका देती है. इसे समझकर ही हम सही कदम उठा सकते हैं – चाहे आप एक अभिभावक हों, शिक्षक या फिर कोई संस्थापक.
इस पेज पर दिख रहे लेख भी इसी अधिकार से जुड़े विभिन्न मामलों और खबरों को कवर करते हैं. पढ़ते रहें, सीखते रहें, और अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल करें.
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो अल्पसंख्यक संस्थानों की पहचान को फिर से परिभाषित करता है। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात सदस्यों वाली संविधान पीठ ने 4:3 के बहुमत से 1967 के फैसले को पलट दिया, जिसका अर्थ है कि एएमयू अब एक अल्पसंख्यक संस्थान मानी जाएगी। यह निर्णय अल्पसंख्यक संस्थानों को उनके अधिकार और स्वायत्तता की दिशा में एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है।