कांग्रेस सरकार द्वारा मुफ्त योजनाओं का प्रभाव
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर हाल ही में लगाए गए आरोप चर्चा का विषय बन गए हैं। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने अपनी तीखी आलोचना में रविवार को कहा कि कांग्रेस सरकार की वादों से भरी योजनाओं ने राज्य को वित्तीय संकट के किनारे ला खड़ा किया है। सरकार की इन योजनाओं में जनता को मुफ्त सुविधाएं देने के वादे थे, जो अब तक पूरी तरह से धरातल पर नहीं उतरी हैं। जोशी का मानना है कि इन योजनाओं के कारण राज्य की आर्थिक स्थिति बदतर होती जा रही है।
विवादास्पद योजनाएं और उनका प्रभाव
प्रह्लाद जोशी ने कांग्रेस सरकार की 'गृह लक्ष्मी योजना' और 'शक्ति योजना' पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ये कुछ योजनाएं हैं जो लागू हो चुकी हैं, लेकिन इनमें से भी कई योजनाएं अधूरी हैं। युवाओं के लिए लाई गई 'युवा शक्ति योजना' के बारे में बड़ा दावा किया गया था, परंतु आज तक इसके लाभार्थियों की संख्या नगण्य है। जोशी ने यह भी सवाल किया कि 2023-24 का कौन सा बेरोजगार स्नातक इस योजना के तहत सहायता ले पाया है। उन्होंने कहा कि सरकार इन वादों को पूरा करने में नाकामयाब रही है, जिससे जनता में असंतोष व्याप्त है।
राज्य के वित्तीय उपाय और उनकी असफलता
जोशी ने राज्य सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर भी सवाल उठाए, खासकर 'अन्न भाग्य योजना' में नाकामयाबी को लेकर। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास केंद्र से ₹28 प्रति किलोग्राम के हिसाब से चावल खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं, जिसके कारण यह योजना सफल नहीं हो पा रही है। इसका सीधा असर जरूरतमंदों तक पहुंचाने वाली खाद्य सामग्री पर पड़ा है। इस तरह की विफलताएं सरकार की अयोग्यता को दर्शाती हैं।
आने वाले चुनाव और भविष्य की राजनीति
जोशी ने यह भी कहा कि इस तरह की राजनीति का प्रभाव कांग्रेस पार्टी के आगामी चुनाव पर देखा जाएगा। उन्होंने भविष्यवाणी की कि महाराष्ट्र चुनावों में कांग्रेस को वही परिणाम भुगतने पड़ेंगे, जैसा जम्मू और कश्मीर तथा हरियाणा में देखा गया। उन्होंने कांग्रेस के आगे की चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि उन्हें आगामी उपचुनाव और विधानसभा चुनावों में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
आर्थिक संकट और राजनीतिक आरोप
कांग्रेस सरकार के खिलाफ दी गई इस टिप्पणी ने राज्य की राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू कर दिया है। जहां एक तरफ राज्य सरकार की मुफ्त योजनाओं ने उन्हें सत्ता में बनाए रखने में मदद की है, वहीं दूसरी ओर राज्य के वित्तीय संकट ने उनकी राजनीति को सवालों के घेरे में ला दिया है। नागरिक इन योजनाओं के वादों से कितने लाभान्वित हुए हैं, यह देखना रोचक होगा।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया और भविष्यनिर्धारण
इसी दौरान कर्नाटक की आम जनता की प्रतिक्रिया भी कई मायनों में महत्वपूर्ण होगी। जरुरतमंदों तक सरकारी सुविधाओं का ना पहुंच पाना एक बड़ा प्रश्न बन कर उभरा है। कांग्रेस सरकार की नीति के खिलाफ जनता की नाराजगी आगामी चुनावों में साफ दिखाई दे सकती है। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में सरकार इन परिस्थितियों में सुधार कर पाती है या नहीं।