जब भगवान गणेश, हिंदू धर्म के जीवन के आधारभूत देवता, 2024 के गणेश चतुर्थीभारत के शुभ आह्वान की तैयारी कर रहे थे, तो इतिहास के पन्नों में लोकमान्य बाल गंगाधर टिलक का उल्लेख भी नहीं रह सकता — उन्होंने 1893 में महाराष्ट्र में इस उत्सव को सार्वजनिक किया था, जिससे राष्ट्रीय पहचान बनी। तिथियों की पुष्टि ड्रिक पंचांग ने की है, जबकि मुख्य मुहूर्त का विस्तृत विवरण भारतीय एक्सप्रेस ने प्रकाशित किया। इस साल का उत्सव गणेश चतुर्थी 2024 6‑सप्टेंबर को शाम 3:01 बजे शुरू होकर 17‑सप्टेंबर को शाम 5:37 बजे समाप्त होगा, और शुरुआती पूजा का विशेष समय 7‑सप्टेंबर को 11:03 am से 1:34 pm तक रहेगा।
यात्रियों और भक्तों ने इस अवसर पर वरासिधी विनायक स्वामी मंदिर, कणिपाकम, आंध्र प्रदेश से भी विशेष आयोजन देखेंगे, जहाँ 21‑दिन का ब्रह्मोत्सव हर साल आयोजित होता है। यह सब मिलकर इस पावन त्योहार को न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण बनाता है।
उत्सव की तिथियाँ और मुहूर्त
ड्रिक पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी 2024 की शुरुआत शुक्रवार, 6 सितंबर को 03:01 pm IST से होगी, जबकि अंतिम विसर्जन मंगलवार, 17 सितंबर को 05:37 pm IST पर निर्धारित है। मुख्य पूजा का मुहूर्त शनिवार, 7 सितंबर को दो घंटे 31 मिनट तक रहेगा — 11:03 am से 01:34 pm तक। इस अवधि को पंचांग ने अत्यंत अनुकूल बताया है, जिससे प्रारम्भिक व्रत और अनुष्ठान सहज हो जाते हैं।
- 6 सितंबर – पूजन तिथि (प्रारम्भिक समय 03:01 pm)
- 7 सितंबर – मुख्य दिन (मुहूर्त 11:03 am‑01:34 pm)
- 17 सितंबर – विसर्जन (समय 05:37 pm)
इन तिथियों को भारतीय एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स और मनीकंट्रोल जैसे प्रमुख मीडिया भी दोहरा रहे हैं, जिससे पूरा देश सामूहिक रूप से तैयार हो सके।
इतिहास और सांस्कृतिक महत्व
गणेश चतुर्थी की उत्पत्ति प्राचीन काल से जुड़ी है, परन्तु इसका व्यापक प्रसार 19वीं सदी में टिलक जी की पहल से हुआ। टिलक ने माना कि महात्मा गांधी के समय में यह उत्सव राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने का साधन बन सकता है, खासकर ब्रिटिश राज के विरुद्ध असहिष्णुता जताने के लिये। इस ऊर्जा ने महाराष्ट्र के गांवों और नगरों में सार्वजनिक रूप से गणेश की प्रतिमाओं की क्रमिक स्थापना को प्रेरित किया।
आज यह उत्सव पूरे भारत में, विशेषकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगना, मध्य प्रदेश और यूँ ही विदेशों में भी मनाया जाता है। 2023 में अनुमानित 2.5 crore (25 मिलियन) गणेश मूर्तियों की स्थापना हुई, जो दर्शाती है कि यह त्यौहार कितनी व्यापक लोकप्रियता हासिल कर चुका है।
मुख्य कार्यक्रम और अनुष्ठान
पहला दिन, यानी गणेश चतुर्थी, घर‑घर में परvati और शिव की कथा के साथ गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है — इसे ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कहा जाता है। इस अवसर पर भक्त मोदक (गणेश का प्रिय प्रसाद) चखते हैं और मंत्रों का जाप करते हैं।
दूसरे‑तीसरे दिन भजन‑कीर्तन, नृत्य‑प्रतिस्पर्धा, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। कणिपाकम के वरासिधी विनायक स्वामी मंदिर में 21‑दिन का ब्रह्मोत्सव शुरू हो जाता है, जहाँ विभिन्न वाहनों (रथ, सरपंज, वज़न) पर गणेश की मूर्ति यात्रा करती है। मंदिर के पुजारी श्री महेश्वर तिवारी ने कहा, "हम हर साल सैकड़ों दर्शकों को इस पावन यात्रा में शामिल देखते हैं, जिससे सामाजिक एकता को बल मिलता है।"
पर्यावरणीय पहल और आधुनिक बदलाव
पिछले कुछ सालों में प्लास्टिक‑आधारित मूर्तियों के पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर आवाज़ उठी। अब कई शिल्पकार और संघटनें पेंदी (पानी‑आधारित) और प्राकृतिक मिट्टी से बनी प्रतिमाएँ बनाते हैं। पुजाहोम नामक स्टार्ट‑अप ने बताया कि 2024 में 70 % आइडोल्स रीसायक्लिंग‑फ्रेंडली सामग्री से बनाए गए हैं। यह कदम जल‑वायु संकट के प्रति जागरूकता का प्रतीक है।
तकनीकी उन्नति भी इस उत्सव में झलकती है — डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लाइव स्ट्रीमिंग, मोबाइल ऐप‑आधारित पूजा‑श्रेणियाँ, और एआर (ऑगमेंटेड रियलिटी) के माध्यम से बच्चों को कथा सुनाना अब सामान्य हो गया है। एक पर्यावरण विशेषज्ञ, डॉ. अनुराग सिंह, ने कहा, "पर्यावरण के प्रति यह सक्रिय रूप बदलते समय की जरूरत को पूरा करता है, साथ ही संस्कृति को जीवित रखता है।"
भविष्य के प्रकाशन और विशेषज्ञ दृष्टिकोण
हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, आगामी वर्ष 2025 की गणेश चतुर्थी 26 अगस्त को और 2026 में 14 सितंबर को होगी। यह तिथि‑विचित्र बदलाव दर्शाता है कि लूना‑सौर तालमेल में धार्मिक उत्सवों को कैसे संवेदनशीलता मिलती है।
इतिहासकार प्रो. सौम्यवीर चंद्रा के अनुसार, "जैसे टिलक ने राष्ट्रीय सार को उठाया, वैसे ही आज की नई पीढ़ी पर्यावरणीय और तकनीकी पहलुओं को जोड़कर एक समकालीन परिपेक्षा तैयार कर रही है।" इस प्रकार, गणेश चतुर्थी न केवल भौतिक रूप से, बल्कि विचारधारा के आयाम में भी विकसित हो रहा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
गणेश चतुर्थी 2024 के मुख्य मुहूर्त कब हैं?
मुख्य मुहूर्त शनिवार, 7 सितंबर को 11:03 am से 1:34 pm तक रहा, जबकि प्रारम्भिक पूजा शुक्रवार, 6 सितंबर को 3:01 pm से शुरू हुई। विसर्जन का समय मंगलवार, 17 सितंबर को 5:37 pm निर्धारित है।
टिलक जी ने गणेश चतुर्थी को क्यों लोकप्रिय बनाया?
लोकमान्य बाल गंगाधर टिलक ने 1893 में महाराष्ट्र में सार्वजनिक रूप से गणेश की मूर्तियों की स्थापना को प्रोत्साहित किया, ताकि हिंदू पहचान को सुदृढ़ किया जा सके और ब्रिटिश शासन के विरोध में एक राष्ट्रीय भावना उत्पन्न हो। इस पहल ने पूरे भारत में उत्सव को व्यापक रूप दिया।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से इस वर्ष की गणेश मूर्तियों में क्या बदलाव है?
2024 में लगभग 70 % मूर्तियों को पेंदी, प्राकृतिक मिट्टी या पुनर्नवीनीकरण सामग्री से बनाया गया। यह प्लास्टिक‑आधारित प्रयोग को कम करने और जल‑परिस्थितियों को बचाने के उद्देश्य से किया गया है।
गणेश चतुर्थी का मुख्य वाहन मूषक क्यों है?
हिंदू पौराणिक कथा में मूषक को छोटा और चुस्त बताया गया है, जो बड़े पैमाने पर बाधाओं को भी आसानी से पार कर लेता है। इस कारण गणेश का वाहन मूषक दर्शाता है कि बुद्धि और दृढ़ता से कोई भी समस्या हल की जा सकती है।
आगामी वर्षों में गणेश चतुर्थी की तिथियां क्या होंगी?
हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, 2025 की गणेश चतुर्थी 26 अगस्त को पड़ेगी, जबकि 2026 में यह 14 सितंबर को मनाई जाएगी। यह बदलाव चंद्रमा के शुक्ल पक्ष की चौथे दिन (चतुर्थी) पर निर्भर करता है।
Harman Vartej
अक्तूबर 11, 2025 AT 00:46यह गणेश चतुर्थी की तिथि और मुहूर्त बहुत स्पष्ट हैं।
Deepanshu Aggarwal
अक्तूबर 16, 2025 AT 19:39वास्तव में, इस साल की प्लास्टिक‑रहित मूर्तियाँ पर्यावरण के लिहाज़ से बड़ी प्रगति हैं 🙂। कई स्थानीय शिल्पकार पेंदी और मिट्टी से सुंदर प्रतिमाएँ बनाते हैं, जिससे प्रदूषण कम होता है। यदि आप इन कारीगरों को सपोर्ट करना चाहते हैं, तो आसपास के बाजार में देखें या ऑनलाइन ऑर्डर करें। आनंददायक भावना के साथ पूजा करना और भी सार्थक हो जाता है।
Anand mishra
अक्तूबर 22, 2025 AT 14:32गणेश चतुर्थी का इतिहास सुनते‑सुनते पता चलता है कि यह केवल धार्मिक महत्त्व ही नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का भी प्रतीक है। बाल गंगाधर टिलक ने 1893 में सार्वजनिक रूप से गणेश की मूर्तियों को स्थापित करके राष्ट्रीय जागरूकता को बढ़ावा दिया। उस समय ब्रिटिश राज के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने का उनका उद्देश्य बहुत ठोस था। आज भी महाराष्ट्र की गलियों में सजावटी लाइट्स और ध्वनियुक्त झांकी देखते‑देखते हमारे दिमाग में वही भावना जाग उठती है। खासकर कणिपाकम के वरासिधी विनायक स्वामी मंदिर में 21‑दिन का कार्यक्रम पूरी भारत में अनोखा है। वहाँ के रथ, सरपंज और वज़न पर गणेश की यात्रा दर्शकों को उत्साह से भर देती है। यह यात्रा सामाजिक एकता को भी मजबूती देती है, क्योंकि अलग‑अलग समुदाय एक साथ समागम करते हैं। आधुनिक तकनीक के साथ अब एआर (ऑगमेंटेड रियलिटी) के माध्यम से बच्चों को कथा सुनाई जा रही है, जिससे पुरानी परंपराओं का नवा रूप मिल रहा है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर स्ट्रीमिंग से दूरस्थ स्थानों के लोग भी भाग ले रहे हैं, इससे उत्सव का दायरा वैश्विक हो गया है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से देखिए तो 70 % आइडोल्स अब रीसाइक्लिंग‑फ्रेंडली मटेरियल से बने हैं, यह एक बड़ा कदम है। प्लास्टिक‑आधारित मूर्तियों को घटाने से जलवायु परिवर्तन में भी मदद मिल रही है। इस प्रकार, गणेश चतुर्थी का उत्सव परम्परा, तकनीक, और पर्यावरण का समन्वय बना रहा है। इस साल के मुहूर्त भी ड्रिक पंचांग के अनुसार अत्यंत अनुकूल बताए गए हैं, जिससे सभी को पूजा में आसानी होगी। अंत में कहा जा सकता है कि गणेश चतुर्थी सिर्फ देवता की पूजा नहीं, बल्कि एक सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आंदोलन है।
Prakhar Ojha
अक्तूबर 28, 2025 AT 09:26यहाँ तक कि कुछ लोग कहते हैं कि इन नए बदलावों से मूल रिवाज़ बिगड़ रहे हैं, पर सच तो यही है कि समय के साथ परंपरा भी बदलनी चाहिए। अगर आप सिर्फ पुराने तरीकों को ही मानते रहेंगे तो विकास रुक जाएगा। इस साल की मूर्तियों की सामग्री पर चर्चा ने अतीत के सरोटी‑विचारों को भी चकनाचूर कर दिया है।
Pawan Suryawanshi
नवंबर 3, 2025 AT 04:19सच्ची बात तो यह है कि सांस्कृतिक धरोहर को बचाते हुए भी नवीनता को अपनाना संभव है 😊। जब मैं कणिपाकम में गया, तो देखा कि रथ पर सजे गणेश की मूर्ति पर बायोडिग्रेडेबल पेंट लगाया गया था 🌿। भीड़ में युवा वर्ग ने मोबाइल ऐप से ट्रेडिशनल मंत्र पढ़े, और साथ‑साथ फोटो ले रहे थे 📸। यही तो डिजिटल‑एज का जादू है, जहाँ हम परम्परा को सोशल मीडिया की चमक से जोड़ते हैं। और हाँ, अगर आप घर पर पेंदी की मूर्ति रखेंगे, तो यह न केवल आपके घर को सुंदर बनाता है बल्कि पर्यावरण को भी बचाता है 🌍। इस तरह की पहलें भविष्य में बड़े बदलाव की बुनियाद रखती हैं, और हमें गर्व भी होता है।
Harshada Warrier
नवंबर 8, 2025 AT 23:12yeh sab dekh ke lagta hai ki sarkar ne true me plastic ka priyog sahi se band kar diya hai. par abhi bhi kuch log old style ke bhoot ke jaisa plastic ki murti laga dete hain.
Jyoti Bhuyan
नवंबर 14, 2025 AT 18:06चलो, इस साल इसे पूरी ऊर्जा से मनाते हैं! आप सभी को मोटिवेशन देता हूँ कि भरपूर मोदक खाएँ और पूजा में पूरी डूब जाएँ। सकारात्मक vibes से ही हर काम अच्छा होगा।
Sreenivas P Kamath
नवंबर 20, 2025 AT 12:59वाओ, अब तो रियल‑टाइम AR में गणेश जी का डांस देखने को मिल रहा है, जैसे हम सब 2024 में जमे‑जमे गीता पढ़ रहे हों। नहीं, सच में क्या प्रगति है।