महात्मा गांधी का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सादा कपड़े, चक्रवाती पहिया और अहिंसा की छवि आती है। लेकिन उनका काम सिर्फ ये चीज़ें नहीं थी – उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ाद कराया, लोगों को अपनी शक्ति दिखायी और कई सामाजिक समस्याओं को उजागर किया।
गांधी जी 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर (अब गुजरात) में पैदा हुए। शुरुआती पढ़ाई इंग्लैंड में हुई, फिर वकालत की पढ़ाई लंदन से पूरी कर दक्षिण अफ्रीका गए जहाँ उन्होंने भारतीयों के खिलाफ भेदभाव देखा। वहीँ से उनका पहला बड़ा कदम अहिंसात्मक प्रतिरोध का आया।
उनकी सबसे बड़ी बात थी "सत्य" और "अहिंसा"। गांधी जी मानते थे कि सच्चाई हमेशा जीतती है, लेकिन उसे पाने के लिए हिंसा नहीं, बल्कि शांति और प्रेम से लड़ना चाहिए। उन्होंने यह विचार ‘सविनय अवज्ञा’ में भी लागू किया – यानी कानून तोड़ना नहीं, परन्तु अनुचित नियमों का विरोध करना।
साथ ही वे स्वदेशी आंदोलन के बड़े समर्थक थे। घी, कपास और अन्य वस्तुओं को विदेश से न खरीदने की सलाह देकर उन्होंने भारतीय उद्योग को जागरूक किया। उनका ‘खादी’ केवल कपड़े नहीं था, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।
गांधी जी ने सामुदायिक बंटवारे के खिलाफ भी आवाज़ उठाई। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकजुटता पर जोर दिया और कई बार दोनों समुदायों को साथ लाने की कोशिश की, जैसे 1932 का कुप्रथा आंदोलन। उनका मानना था कि भारत सिर्फ राजनैतिक आजादी नहीं, बल्कि सामाजिक समानता से भी मुक्त होना चाहिए।
गांधी जी की शिक्षाएँ अभी भी हमारे रोज़मर्रा के जीवन में दिखती हैं। स्वच्छता अभियान, ग्राम विकास और छोटे-छोटे उद्यमों को बढ़ावा देने वाले कई सरकारी योजनाओं में उनके ‘स्वराज’ का असर है। लोग अब भी अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं – चाहे वह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हो या पर्यावरणीय मुद्दा।
शिक्षा प्रणाली में भी उनका प्रभाव है। कई स्कूल और कॉलेज गांधी जी के नाम पर हैं, जहाँ ‘नैतिक शिक्षा’ को पढ़ाया जाता है। उनके विचारों से प्रेरित NGOs आज स्वास्थ्य, साक्षरता और महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि उनकी सोच अब आधुनिक समय में पुरानी हो गई, परन्तु उनका मूल संदेश – शांति, सत्य और स्वावलंबन – अभी भी कई समस्याओं का समाधान प्रदान करता है। जब हम बड़े बदलाव चाहते हैं, तो गांधी जी की राह दिखाने वाली बातों को याद करना फायदेमंद होता है।
संक्षेप में कहा जाये तो महात्मा गाँधी न सिर्फ़ एक राजनीतिक नेता थे, बल्कि सामाजिक सुधारक भी थे जिनकी सोच ने भारत को आज़ाद और आत्मनिर्भर बनाने में मदद की। उनके सिद्धांत पढ़ना, समझना और जीवन में अपनाना अभी भी हमारे लिये जरूरी है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दिल्ली में शहीद दिवस के अवसर पर मौन धारण किया, जो महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारत की स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। मुख्यमंत्री धामी का यह कदम राष्ट्रव्यापी शहीद दिवस पर्यवेक्षण का हिस्सा है, जिसे देशभर के सरकारी कार्यालयों और संस्थानों द्वारा भी मनाया जाता है।