कुर्बानी: क्यों और कैसे मनाएँ

हर साल ईद उल-अधा पर करोड़ों लोग कुर्बानी करते हैं। इसका मतलब सिर्फ़ बकरी या गाय मारना नहीं, बल्कि क़ुरान में बताई गई इबादत को अपनाना है। अगर आप पहली बार इस फसल के बारे में जान रहे हैं तो यहाँ सरल तरीके से समझाया गया है कि कब, कहाँ और कैसे यह रिवाज़ किया जाता है।

कुर्बानी का इतिहास

इस्लाम में कुर्बानी का जड़ अब्रा‍हिम (इब्राही) के साथ जुड़ा है। जब अल्ला ने उन्हें अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने की आज़माइश दी, तो उन्होंने अपनी नीयत साफ रखी और अंत में अल्ला ने उनका बेटा बचा दिया। इस कहानी से सीख यह है कि इरादा सच्चा होना चाहिए और दया के साथ काम करना चाहिए। इसलिए कई लोग अब जानवर को मारने की बजाय उसकी खून का एक छोटा हिस्सा लेकर अपने घर में रख लेते हैं या चैरिटी में देते हैं।

समय के साथ कुरबानी की रीतियों में बदलाव आया है। पुराने समय में केवल बकरी या भेड़ ही कुर्बान होते थे, आज गाय, ऊंट और यहाँ तक कि मटन भी स्वीकार्य माना जाता है। कई देशों में सरकार ने जानवरों को नुकसान न पहुँचाने के लिए नियम बनाए हैं, जैसे कि पशु कल्याण अधिनियम। इन नियमों का पालन करना जरूरी है, वरना कानूनी पेनाल्टी लग सकती है।

आधुनिक समय में कुर्बानी

आजकल लोग कुरबानी को सामाजिक काम के साथ जोड़ते हैं। कई मस्जिदें और दान संगठनों ने "दुया" प्रोग्राम चलाए हैं, जहाँ आप अपने पशुपालन वाले किसान से सीधे जानवर खरीद सकते हैं और उसका मांस जरूरतमंदों तक पहुंचा सकते हैं। इससे न सिर्फ़ गरीबों को फायदा मिलता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है।

अगर आपके पास जगह नहीं है या आप शाकाहारी परिवार में रहते हैं तो वैकल्पिक उपाय भी हैं। आप दही, फल या किसी अन्य मदद के रूप में दान दे सकते हैं। कई इस्लामी विद्वानों ने कहा है कि इरादे और दया ही असली कुर्बानी बनाते हैं, इसलिए बिन‑बिलकुल जानवर नहीं मारना भी ठीक है।

एक और बात ध्यान रखें – कुरबानी का समय ईद उल-अधा के पहले दिन से शुरू होता है, लेकिन कई लोग इसे दो या तीन दिनों तक चलाते हैं। इस दौरान आप अपने घर में साफ़‑सफाई कर सकते हैं, मेहमानों को बुला सकते हैं और इफ्तार की तैयारियाँ कर सकते हैं। यह एक सामाजिक समारोह भी बन जाता है जहाँ पड़ोसी और रिश्तेदार मिलते‑जुलते हैं।

कुरबानी करने से पहले कुछ जरूरी चीज़ें जांच लें: क्या जानवर स्वस्थ है? उसका बंधन ठीक से किया गया है? क्या आप उसे humane तरीके से मार रहे हैं? ये सवाल आपके कार्य को नैतिक बनाते हैं और अल्ला की रज़ा भी दिलाते हैं।

अंत में, कुरबानी का मकसद सिर्फ़ बलि देना नहीं, बल्कि इरादे को साफ़ रखना, जरूरतमंदों की मदद करना और अपने अंदर के अहंकार को घटाना है। इस बार जब आप ईद उल-अधा मनाएँ, तो इन बातों को याद रखें और एक सकारात्मक बदलाव लाएँ।

ईद उल-अधा 2024: इतिहास, महत्व और कुर्बानी का त्योहार

ईद उल-अधा, इस्लाम का महत्वपूर्ण त्योहार, 17 जून 2024 से 19 जून 2024 तक मनाया जाएगा। यह पैगंबर इब्राहिम की अपने बेटे इस्माइल को अल्लाह के आदेश पर कुर्बान करने की तत्परता को याद करता है। त्योहार में कुर्बानी, अल्लाह पर विश्वास, और मुसलमानों की एकता का महत्व है। मुसलमान मज्जिदों और ईदगाहों में नमाज अदा करेंगे, उसके बाद पशुओं की कुर्बानी करेंगे।

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