बाज़ार वॉल्यूम क्या है? आसानी से सीखिए

जब आप शेयर या कोई भी कमोडिटी देखते हैं तो सबसे पहले कीमत दिखती है, लेकिन असली ताकत अक्सर वॉल्यूम में होती है। वॉल्युम यानी ट्रेड की गई कुल मात्रा बताता है कि उस दिन या घंटे में कितनी यूनिट्स खरीदी‑बेची गयीं। अगर वॉल्यूम हाई है तो मार्केट में रुचि ज़्यादा और कीमत पर असर भी बड़ा हो सकता है।

वॉल्यूम को पढ़ना क्यों जरूरी है?

कई बार आप देखेंगे कि कीमत एकदम ऊपर‑नीचे होती है, लेकिन अगर वॉल्यूम कम रहा तो वो मूवमेंट टिकाऊ नहीं रह पाता। हाई वॉल्यूम के साथ बढ़ती या गिरती कीमतें आमतौर पर ट्रेंड को मजबूत करती हैं। इसलिए ट्रेडर अक्सर वॉल्यूम चार्ट को देख कर एंट्री‑एग्जिट तय करते हैं।

उदाहरण के लिये, अगर किसी स्टॉक की कीमत 10% बढ़ी और उसी साथ वॉल्यूम दो गुना हो गया, तो बहुत संभावना है कि वो ट्रेंड आगे भी चलता रहेगा। वहीं अगर वही 10% उछाल सिर्फ़ कम वॉल्यूम में हुआ, तो मार्केट शायद उस स्तर पर रुक सकता है या उल्टा मूव कर सकता है।

बाजार वॉल्यूम का उपयोग कैसे करें?

1. **ट्रेंड की पुष्टि** – जब भी आप कोई नया ट्रेंड देखेंगे, पहले चेक करें कि वॉल्यूम साथ में बढ़ रहा है या नहीं। अगर हाँ, तो उस दिशा में ट्रेड करना सुरक्षित रहता है।

2. **ब्रेकआउट/ब्रेकडाउन पहचानें** – कीमत किसी सपोर्ट या रेज़िस्टेंस को पार करती है तो देखिए वॉल्यूम क्या तेज़ी से बढ़ रहा है? अगर हाँ, तो ब्रेकआउट मजबूत माना जाता है।

3. **वॉल्यूम स्पाइक पर सावधानी** – कभी‑कभी अचानक वॉल्यूम में झटका आ जाता है लेकिन कीमत स्थिर रहती है। ऐसे केस में बाजार भ्रमित हो सकता है और फॉल्टी सिग्नल दे सकता है, इसलिए अन्य इंडिकेटर के साथ मिलाकर देखना बेहतर रहता है।

4. **डिविडेंड या इवेंट्स का असर** – कंपनी के बड़े इवेंट जैसे डिविडेंड घोषित होने पर वॉल्यूम में अचानक बढ़ोतरी होती है। इस समय ट्रेडिंग करने से पहले रिटर्न और रिस्क दोनों को समझें।

5. **सेक्टर वॉल्यूम की तुलना** – अगर आप पूरे मार्केट की बजाय किसी विशेष सेक्टर में इंट्रेस्ट रखते हैं, तो उसी सेक्टर के औसत वॉल्यूम से तुलना करें। इससे पता चलेगा कि आपका चुना हुआ स्टॉक बाजार में कितना सक्रिय है।

इन टिप्स को रोज़मर्रा की ट्रेडिंग में अपनाने से आप बेवजह जोखिम कम कर पाएंगे और बेहतर एंट्री‑एग्जिट पॉइंट पा सकेंगे। याद रखें, वॉल्यूम सिर्फ़ एक संकेतक नहीं, बल्कि मार्केट के भावनाओं का आँका हुआ माप है।

अंत में यह कहना चाहूँगा कि अगर आप अभी शुरुआत कर रहे हैं तो छोटे‑छोटे ट्रेड पर ध्यान दें, बड़े पोजिशन पहले वॉल्यूम को समझकर ही लें। धीरे‑धीरे अनुभव बढ़ेगा और आपका विश्वास भी साथ में मजबूत होगा। बाजार के हर बदलाव को एक सीख मानें, और वॉल्यूम को अपने निर्णयों का भरोसेमंद साथी बनाएं।

SEBI के हफ्तावार विकल्प अनुबंधों पर नियंत्रण के प्रस्ताव से NSE और बाजार पर संभावित असर: राजेश बहेती

क्रोसेस कैपिटल के राजेश बहेती ने सेबी के साप्ताहिक विकल्प अनुबंधों पर नियंत्रण के प्रस्ताव पर प्रकाश डालते हुए इसके संभावित प्रभावों पर चर्चा की। सेबी का प्रस्ताव केवल एक साप्ताहिक विकल्प अनुबंध की अनुमति देने का सुझाव देता है, जो विभिन्न एक्सचेंजों पर लागू हो सकता है। इससे एनएसई के व्यापार पर गंभीर असर पड़ सकता है।

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