हर दिन बहुत लोग अपने मन की तकलीफ छुपा कर रखते हैं। कभी‑कभी ये दर्द इतना बढ़ जाता है कि व्यक्ति खुद को खत्म करने का विचार करता है। ऐसे में सबसे पहला कदम है बात करना – चाहे दोस्त, परिवार या किसी पेशेवर से. खुलकर बताने से हल्का महसूस होता है और समाधान निकलता है.
अगर कोई अचानक उदास रहता है, नींद कम होती है, या रोज़ की चीज़ों में रूचि नहीं ले रहा, तो ये खतरे का सिग्नल हो सकता है. अक्सर लोग बात नहीं करते पर सोशल मीडिया पर गहरी निराशा वाले पोस्ट डालते हैं. "मैं अब और नहीं सह पाऊँगा" जैसे शब्द भी एक संकेत होते हैं. इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें, तुरंत मदद की पेशकश करें.
भारत में कई हेल्पलाइन उपलब्ध हैं – 9152987821 (सेन्ट्रल) या 1098 (वॉयस)। आप अपने शहर के मनोवैज्ञानिक क्लिनिक, अस्पताल या नजदीकी पुलिस स्टेशन पर भी जा सकते हैं. अगर किसी को तुरंत खतरा महसूस हो रहा है तो एम्बुलेंस बुलाना सबसे तेज़ उपाय है. याद रखें, मदद माँगना कमजोरी नहीं, बल्कि हिम्मत का काम है.
परिवार और दोस्तों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. रोज़ थोड़ा समय निकालकर पूछें कि वे कैसे हैं. अगर कोई जवाब नहीं देता या बचाव के संकेत दिखाता है तो पेशेवर सहायता लेना ज़रूरी है. छोटे‑छोटे बदलाव, जैसे नियमित व्यायाम, सही खानपान, ध्यान या योग भी मन को शांत रखने में मदद करते हैं.
कभी‑कभी अकेलेपन की भावना बहुत तेज़ हो जाती है. ऐसी स्थिति में स्थानीय समर्थन समूहों में शामिल होना फायदेमंद होता है. यहाँ आप अपने अनुभव साझा कर सकते हैं और दूसरों से सीख सकते हैं कि कैसे उन्होंने कठिन समय को पार किया. इंटरनेट पर भी कई भरोसेमंद मंच होते हैं जहाँ आप गुप्त रूप से बात कर सकते हैं.
अंत में, यह याद रखें कि आत्महत्या का कोई हल नहीं है; यह समस्या का समाधान नहीं बल्कि एक अस्थायी दर्द का स्थायी परिणाम है. अगर आप या आपका कोई जानकार इस राह पर चल रहा है तो तुरंत कदम उठाएँ – कॉल करें, मिलें, या पेशेवर से सलाह लें. आपकी छोटी सी कार्रवाई किसी की ज़िंदगी बचा सकती है.
प्रख्यात कन्नड़ फिल्म निर्देशक गुरु प्रसाद का आत्महत्या करके निधन हो गया है। उनके निर्देशन में बनी फिल्में जैसे 'माता' और 'येड्डेलू मंजुनाथा' प्रसिद्ध रही हैं। उनके निधन का सटीक कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। फिल्म उद्योग और उनके प्रशंसक इस क्षति से शोकमग्न हैं।