जब श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज, जो वृंदावन रसिक संत के रूप में जाने जाते हैं, ने 29 अप्रैल 2024 को वृंदावन, उत्तर प्रदेश के वराह घाट में आयोजित एक सत्संग में कर्म और भाग्य के गहरे संबंध पर प्रकाश डाला, तो यह खबर सिर्फ आध्यात्मिक चर्चा नहीं, बल्कि आज के मनोवैज्ञानिक संकटों से जूझ रहे लोगों के लिए एक दिशा‑निर्देश बन गई।
वृंदावन में सत्संग की पृष्ठभूमि
वृंदावन, मथुरा जिले के हृदय में स्थित एक तीर्थस्थल है जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। इसी धाम पर श्री हित राधा केलि कुंज आश्रम स्थित इस संत का ‘साधन पथ’ यूट्यूब चैनल पर 36 मिनट 29 सेकंड का वीडियो अपलोड किया गया, जिसमें उन्होंने "कर्म का फल जनसेवा ही है" के शीर्षक से अपना संदेश प्रस्तुत किया।
कर्म‑भाग्य के बीच गहरा संबंध
संत ने स्पष्ट किया कि "जो कर्म आपने प्राप्त किया है, उसे भगवान को समर्पित कर दो, तो वह यज्ञ बन जाएगा" (समय‑चिन्ह 00:01)। इस बिंदु को समझाने के लिए उन्होंने अपने जीवन‑कर्म को "गोदाम" के रूप में बताया – यानी पहिलें जन्मों के कर्मों का संचित भंडार। जैसे पुराना अनाज को पीसकर आटा बनता है, वैसे ही हमारे शरीर में संचित कर्मों का परिणाम भाग्य के रूप में प्रकट होता है।
वह आगे कहते हैं, "कर्म किया जा रहा है और जो कर्म किए हैं पीछे, उससे भाग्य बनता है" (समय‑चिन्ह 00:00‑00:52)। यहाँ उन्होंने दो श्रेणियों का उल्लेख किया:
- संचित कर्म (गोदाम) – पिछले जन्मों के अच्छे‑बुरे कर्म का संग्रह, जो हमारे वर्तमान भाग्य को तय करता है।
- क्रियमाण कर्म – वर्तमान में किए जा रहे कर्म, जो भविष्य के भाग्य को आकार देते हैं।
संत का दावा है कि "कर्म योग से हम अपने भाग्य को भी बदल सकते हैं"। इसका मतलब यह नहीं कि हम भाग्य को पूरी तरह हटाकर नई शुरुआत कर सकते हैं, बल्कि ईमानदारी, सेवा और भक्ति के माध्यम से उसका प्रभाव कम कर सकते हैं।
मुख्य शिक्षाएँ और उद्धरण
संत ने कई बार कहा कि "अधर्म से किसी भी प्रकार का सुख लेने का प्रयास करोगे तो नष्ट हो जाओगे" (समय‑चिन्ह 11:53) और "शोक, उद्विग्नता, भय और मृत्यु ये परिणाम हैं" (समय‑चिन्ह 12:30)। उन्होंने यह भी बताया कि "कर्म किसी को माफ नहीं करता"; चाहे आप सजा से बच भी जाएँ, वह यमलोक की जेल जैसा होगा, जहाँ यमराज स्वयं जेलर है (समय‑चिन्ह 21:50)।
संत के शब्दों में थोड़ी सी दया भी छिपी है: "यदि आप यह यज्ञ बनाकर भगवान को समर्पित कर दें, तो वह भगवतः प्राप्ति की राह खोल देगा"। यह विचार उन लोगों के लिए प्रासंगिक है जो आध्यात्मिक अभ्यास को केवल व्यक्तिगत लाभ के तौर पर देख रहे हैं।

समाज पर संभावित प्रभाव
आज के समय में डिप्रेशन, निराशा और निःस्वार्थता की कमी की रिपोर्टें आम हैं। संत ने बताया कि कुकर्म की लहरें सीधे ही मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ती हैं। "अधिक लोग डिप्रेशन में जा रहे हैं... क्योंकि कुकर्मा आचरण हो रहा है" (समय‑चिन्ह 12:45)। उनकी बात सुनकर कई सामाजिक कार्यकर्ता और मनोवैज्ञानिक इस दार्शनिक दृष्टिकोण को मानसिक स्वास्थ्य के पूरक के रूप में देख रहे हैं। एक संभावित कदम यह हो सकता है कि आध्यात्मिक समूहों को मानसिक परामर्श केंद्रों के साथ जोड़कर एक समग्र उपचार मॉडल तैयार किया जाए।
भविष्य की दिशा और अनुसरण के रास्ते
संत ने कहा कि "शुभ कर्म करते हुए भी आप अशुभ कर्म कर सकते हैं, क्योंकि दोनों मिलकर शरीर रचना बनाते हैं"। इसका अर्थ यह है कि सतत आत्म‑निरीक्षण और शुद्धिकरण आवश्यक है। उनका ‘साधन पथ’ यूट्यूब चैनल इस प्रक्रिया को डिजिटल रूप में आसान बनाता है – जहाँ रोज़ाना नई सत्संग, मंत्र जप और शिष्टाचार पर वीडियो अपलोड होते हैं।
आगे चलकर हम देखेंगे कि इस प्रकार की ऑनलाइन आध्यात्मिक शिक्षा किस हद तक युवा वर्ग को आकर्षित करती है और क्या यह सामाजिक नैतिकता को पुनर्स्थापित करने में मदद कर सकती है। समय के साथ यह भी स्पष्ट हो सकता है कि "कर्म योग" के माध्यम से भाग्य बदलने की अवधारणा कितनी वैध और व्यावहारिक है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का मुख्य संदेश क्या है?
उनका मुख्य संदेश "कर्म किसी को माफ नहीं करता" है। वे बताते हैं कि संचित कर्म हमारे भाग्य को निर्धारित करता है, जबकि वर्तमान कर्म भविष्य को आकार देते हैं, और केवल ईमानदार सेवा व भक्ति के माध्यम से ही भाग्य में बदलाव लाया जा सकता है।
संत ने "संचित कर्म" को कैसे समझाया?
संचित कर्म को उन्होंने "गोदाम" कहा – यानी पिछले जन्मों के सभी पुण्य‑पापों का संग्रह। इस गोदाम से निकला भाग्य आज के हमारे जीवन, स्वास्थ्य और परिस्थितियों को निर्धारित करता है।
क्या यह शिक्षाएँ आधुनिक मनोवैज्ञानिक समस्याओं से निपटने में मदद कर सकती हैं?
संत ने कहा कि कुकर्मी व्यवहार से उत्पन्न शोक, उद्विग्नता और डिप्रेशन सीधे ही हमारे कर्म‑परिणाम से जुड़े हैं। इसलिए ईमानदार सेवा, आत्म‑निरीक्षण और व्यक्तिगत भक्ति को अपनाने से न केवल आध्यात्मिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार संभव है।
विकल्पिक रूप से भाग्य को बदलने के लिए क्या उपाय सुझाए गए?
संत ने "कर्म योग" को प्रमुख साधन बताया – अर्थात् शुद्ध नीयत से किया गया स्वयंसेवा, जप, और भजन। इन कार्यों को भगवान को समर्पित करने पर वह यज्ञ बन जाता है, जिससे भाग्य में सकारात्मक बदलाव संभव होता है।
भविष्य में इस संदेश का प्रसार कैसे हो सकता है?
‘साधन पथ’ यूट्यूब चैनल के माध्यम से सत्संग, मंत्र जप और प्रश्नोत्तर सत्र नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की पहुंच बढ़ने पर यह शिक्षा युवा वर्ग तक भी पहुँच सकती है, जिससे सामाजिक नैतिकता और आध्यात्मिक जागरूकता दोनों में सुधार आशान्वित है।
Parth Kaushal
अक्तूबर 15, 2025 AT 01:42वृंदावन में हुए इस सत्संग में महाराज ने कर्म‑भाग्य के गहरे रहस्य को इतना विस्तृत रूप से बताया कि साधारण श्रोता भी अपने जीवन की जटिलता को एक नई रोशनी में देख पाते हैं। वह कहते हैं कि प्रत्येक कर्म का परिणाम, चाहे वह पिछले जन्मों का हो या इस जन्म का, एक गोदाम में संचित होता है और वही गोदाम हमारे भाग्य को निर्धारित करता है। इस विचार को समझाने के लिए उन्होंने पुराने अनाज की तुलना की, जहां अनाज को पीस कर आटा बनाया जाता है, वैसे ही हमारे कर्मों को पीसकर भाग्य के रूप में परिणाम मिलता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वर्तमान में किए जा रहे कर्म, अर्थात् क्रियमाण कर्म, भविष्य के भाग्य को आकार देते हैं, इसलिए हर दिन की छोटी‑छोटी क्रियाएँ भी हमारे भविष्य को प्रभावित कर सकती हैं। इस सिद्धान्त को समझने के बाद, वह कहते हैं कि हमें अपने कर्मों को भगवान को समर्पित करना चाहिए, जिससे वह यज्ञ बन जाए और हमारे भाग्य में संस्कारी बदलाव आए। उन्होंने यह भी बताया कि अधर्म के मार्ग पर चलने वाले सभी सुख अस्थायी होते हैं और अंत में नष्ट ही हो जाते हैं, जबकि धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति शांति और समृद्धि का स्वाद चखता है। कड़ी मेहनत, निस्वार्थ सेवा और सच्ची भक्ति को अपनाकर ही हम अपने भाग्य को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं। संत ने यह भी कहा कि मन के द्वंद्व, शोक, उद्विग्नता और भय का मूल कुकर्म है, और इसे दूर करने के लिए आत्म‑निरीक्षण और निरंतर शुद्धिकरण आवश्यक है। उन्होंने बताया कि निरन्तर आत्म‑निरीक्षण से ही हम अपने भीतर के अशुभ कर्मों को पहचान कर उन्हें शुद्ध कर सकते हैं। संचित कर्मों के भण्डार को इस जीवन में उठाने के लिए हमें अपने पुराने कृत्यों का हिसाब देना पड़ता है, जैसा कि वह कुटुंब की विरासत को संभालने के समान रूपक में कहता है। इस प्रक्रिया में, संकल्प शक्ति और निरंतरता मुख्य भूमिका निभाते हैं, इसलिए हमें अपनी दैनिक गतिविधियों में निरन्तरता बनाए रखनी होगी। अंत में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि कर्म योग, यानी शुद्ध नीयत से किया गया कार्य, वह सबसे बड़ा उपकरण है जिसके द्वारा हम अपनी नियति को पुनः लिख सकते हैं, और यही संदेश इस सत्संग का सार है।