राहुल गांधी के भाषण से राजवंशों में आक्रोश
भारत के पूर्व महाराजाओं को 'आज्ञाकारी' कहने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। राहुल गांधी, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ उनके रिश्वतखोरी और धमकी के प्रचार पर प्रश्न उठाए, उन्होंने दावा किया कि कैसे इस कंपनी ने भारतीय स्वतंत्रता को छीन लिया था। यह बयान कुछ राजवंशों के लिए अपमानजनक साबित हुआ, जिनमें से कई भाजपा से जुड़े हैं।
भाजपा नेताओं की नाराजगी
केंद्रीय मंत्री और ग्वालियर राजवंश के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राहुल गांधी के इस बयान की तीखी आलोचना की। उन्होंने सामाजिक नेटवर्क X पर एक पोस्ट में लिखा कि यह बयान 'भारत माता' का अपमान है। सिंधिया ने भारतीय इतिहास के सच्चे नायकों जैसे महादजी सिंधिया, युवराज बीर टिकेंद्रजीत, किट्टुर चेन्नम्मा, और रानी वेलु नचियार के योगदान को याद करने की सलाह दी। उन्होंने राहुल पर 'चुनिंदा भूल' का आरोप भी लगाया, जिसमें वे अपने विशेषाधिकार भूलने की बात करते हैं। यह कांग्रेस की कथित योजना को भी बेनकाब करने वाला था।
दीया कुमारी की प्रतिक्रिया
राजस्थान की डिप्टी चीफ मिनिस्टर दीया कुमारी, जो जयपुर के अंतिम महाराजा मान सिंह II की नातिन हैं, ने भी राहुल के इस विचार को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि भारत के एकीकृत होने का सपना इन राजवंशों के बलिदानों से ही साकार हुआ है। उन्होंने जोर दिया कि आधे-अधूरे ऐतिहासिक तथ्यों की व्याख्या के आधार पर लगाए गए आरोप अस्वीकार्य हैं।
अन्य राजवंशों के नेताओं की प्रतिक्रिया
मैसूर के सांसद और मैसूर राजवंश के सदस्य यदुवीर वाडियर ने राहुल के इतिहास ज्ञान की कमी पर टिपण्णी की। उन्होंने कहा कि राहुल का बयान इस सच्चाई की अनदेखी करता है कि कैसे भारतीय सामरिक राज्यों ने आधुनिक भारत के निर्माण में योगदान दिया और भारत की सांस्कृतिक विरासत संरक्षित की।
जैसलमेर के शाही परिवार के वंशज चैतन्य राज सिंह और भारत से जुड़ा हुआ मिवार परिवार के सदस्य तथा राजस्थान के विधायक विश्वराज सिंह ने भी राहुल के आरोपों को काल्पनिक और अस्वीकार्य बताया। विश्वराज सिंह ने यह भी पूछा कि क्या यह राहुल की अज्ञानता थी या जानबूझकर किए गए परिहास।
इतिहास का पुनर्मूल्यांकन
यह विवाद सुलझा पाने के लिए आवश्यक है कि इतिहास के विभिन्न दृष्टिकोणों को मूल्यांकित किया जाए। भारत की स्वतंत्रता संग्राम में केवल एक पक्षीय दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सभी पक्षों के संघर्ष और बलिदानों को सावधानी से देखा जाए। भारत की असल ताकत उसकी विविधता और इतिहास में है, और इसी को समझते हुए हमें इतिहास की जड़ों को मजबूत बनाना होगा।
इसलिए, इस बहस को केवल राजनीतिक मंच पर नहीं, बल्कि शिक्षा और ज्ञानवर्धन के माध्यम से सोशल प्लेटफॉर्म से भी जोड़ा जाना चाहिए। यह जरूरी है कि नई पीढ़ी इतिहास के सटीक और संतुलित आउटलुक तक पहुंचे ताकि वो अपने पूर्वजों के संघर्षों और उपलब्धियों को गरिमा दें।
इतिहास की इस नई व्याख्या ने यह भी बताएगा कि आज के भारत का निर्माण कैसे हुआ और इसे और बेहतर संरचना कैसे दी जा सकती है।