नवरात्रि का चौथा दिन
नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा का विशेष महत्व है। इनमें से चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की विशेष पूजा की जाती है। यह दिन माँ दुर्गा के चौथे रूप के रूप में प्रतिष्ठित है। माँ कूष्माण्डा को सृष्टि की सर्जक के रूप में जाना जाता है, यही वजह है कि इनकी पूजा खासतौर से उत्कृष्ट ऊर्जा और सकारात्मकता प्रदान करने के लिए की जाती है। इनकी आठ भुजाएँ हैं, जिसमें वे विभिन्न दिव्य वस्तुएं धारण करती हैं, और इनका वाहन शेर होता है। इस प्रकार वे साहस और शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं।
माँ कूष्माण्डा का महत्व
माँ कूष्माण्डा की पूजा करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और जीवन में समृद्धि आती है। यह माना जाता है कि माँ कूष्माण्डा अपने भक्तों के सभी दुःख और संताप को समाप्त करती हैं। उनके दर्शन मात्र से मन को शांति और आत्मा को विवेक प्राप्त होता है। माँ कूष्माण्डा को हृदय चक्र से भी जोड़ा जाता है, जो प्रेम और सौहार्द का प्रतीक होता है। इस दिन भक्तजन अपने जीवन से तनाव, भय, और चिंता दूर करने के लिए उनकी उपासना करते हैं।
पूजा विधि
माँ कूष्माण्डा की पूजा के लिए भक्तों को ब्रह्म मुहूर्त में जागरण करना चाहिए, जो प्रातः 4:39 बजे से 5:28 बजे के बीच होता है। इस समय स्नान कर पवित्रता धारण किए हुए नारंगी वस्त्र पहनना चाहिए, क्योंकि नारंगी रंग ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक होता है। इस पूजा में प्रयोग किए जाने वाले सामग्री में सिंदूर, पवित्र धागा, चंदन का लेप, अक्षत और लाल फूल विशेष रूप से शामिल होते हैं। माँ कूष्माण्डा की आराधना के सार के रूप में स्वादिष्ट मालन टप्पे तैयार करते हैं, जिसे भोग के रूप में अर्पित करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं।
पूजा की प्रक्रिया
पूजा की शुरुआत कलश की स्थापना से की जाती है। इसके पश्चात माँ कूष्माण्डा की प्रतिमा अथवा चित्र के समक्ष सिंदूर, फूल, अक्षत और पुष्पमाला अर्पित की जाती है। इसके साथ ही घी से दीप जलाकर और धूप जलाकर वातावरण को पवित्र किया जाता है। अधिकतर भक्त 108 बार 'ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः' मंत्र का जाप करते हैं। पूजा का अंत 'दुर्गा सप्तशती' अथवा 'दुर्गा चालीसा' के पाठ से होता है, जिसे सुनने अथवा पाठ करने से भक्तों को जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है। अंत में, माँ की प्रतिमा के समक्ष जल अर्पण करके पूजा समाप्त की जाती है।
शुभ मुहूर्त
इस दिन पूजा के लिए प्रमुख शुभ मुहूर्त होते हैं - ब्रह्म मुहूर्त (4:39 AM से 5:28 AM), अभिजीत मुहूर्त (11:45 AM से 12:32 PM), और विजय मुहूर्त (2:06 PM से 2:53 PM)। माँ कूष्माण्डा की कृपा प्राप्त करने के लिए 'या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।' स्तुति का उच्चारण विशेष फलदायिनी माना जाता है।
माँ कूष्माण्डा की उपासना से न केवल भक्तों को दिव्य ऊर्जा की प्राप्ति होती है बल्कि यह दुनिया के सभी कोनों में प्रेम और सद्भावना फैलाने का कार्य करती है। भक्तों को अपने चित्त को शांत कर और विश्वास में लीन होकर माँ कूष्माण्डा की पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार, नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और विशेष होता है।