जब डोनाल्ड ट्रम्प, अमेरिकी राष्ट्रपति, ने 1 नवंबर से चीनी वस्तुओं पर 100% अतिरिक्त शुल्क की घोषणा की, तो इस समाचार ने भारतीय शेयर बाजार में तुरंत लहरें खड़ी कर दीं। नेशनल स्टॉक एक्सचेन्ज (NSE) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेन्ज (BSE) के डेटा से पता चलता है कि 13 अक्टूबर 2025 को दो कारोबारी सत्रों की तेज़ी अचानक थम गई, और प्रमुख इंडेक्स नीचे की ओर मुड़ गया। यह गिरावट मुख्यतः विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) की भारी बिकवाली और वैश्विक बाजारों में असंतोष के कारण थी।
बाजार की दिनचर्या और मुख्य आँकड़े
बीएसई सेंसेक्स 173.77 अंक (0.21%) गिरकर 82,327.05 पर बंद हुआ, जबकि एनएसई निफ्टी 58 अंक (0.23%) गिरकर 25,227.35 पर। दोपहर 1:00 बजे निफ्टी 104 अंक नीचे 25,180 के स्तर पर पहुँचा, और सेंसेक्स 355 अंक पीछे गिरते हुए 82,144 पर था। दिन के दौरान एक क्षण में सेंसेक्स 457.68 अंक तक गिर गया, जो आँकड़े दर्शाते हैं कि बाजार में अस्थिरता बहुत तेज़ थी।
एनएसई की आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, FIIs ने इस दिन कुल 7,866.36 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे और 8,066.63 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिससे उनकी नेट बिकवाली 200.27 करोड़ रुपये रही। इसके विपरीत, घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs) ने 14,387.46 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे और 12,189.43 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिससे उनकी नेट खरीदारी 2,198.03 करोड़ रुपये रही। ये आंकड़े दोपहर 3:30 बजे तक के हैं और अनंतिम हैं।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली के पीछे की वजह
विशेष रूप से अमेरिकियों की टैरिफ नीति ने एशिया‑अमेरिका व्यापार में नई अनिश्चितताएँ जोड़ दीं। ट्रम्प द्वारा चिह्नित 100% शुल्क न केवल चीन को बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन को भी प्रभावित करता है, जिससे जोखिम‑भरे परिसंपत्तियों की बिक्री तेज़ हो गई। "टैक्स और टैरिफ का असर सीधे भारतीय इक्विटीज़ में परिलक्षित हुआ," कहते हैं वित्तीय विश्लेषक अजय सिंह (बेल्लस्ट्रॉस निवेश). "जब विदेशी फंड्स वहाँ से बाहर निकलते हैं, तो स्थानीय बाजार का भार तुरंत बढ़ जाता है।"
FIIs की बिकवाली ने न केवल निफ्टी को नीचे गिराया, बल्कि कई ब्लू‑चिप स्टॉक्स को भी दबाव में ला दिया। विशेष रूप से आईटी और उपभोक्ता वस्तु कंपनियों के शेयरों में गिरावट प्रमुख रही।

सेक्टर‑वाइज प्रदर्शन
नीचे कुछ प्रमुख सेक्टरों का विस्तृत सारांश दिया गया है:
- टाटा मोटर्स, इन्फोसिस और हिंदुस्तान यूनिलीवर ने भारी नुकसान झेला।
- इसके विपरीत, अडानी पोर्ट्स, भारती एयरटेल और बजाज फाइनेंस जैसी कंपनियों ने उल्लेखनीय लाभ दर्ज किया।
- आईटी सेक्टर में पूरे सप्ताह खरीदारी का माहौल रहा, परंतु सोमवार को अचानक बिकवाली की जड़ रही, जिससे एशियाई बाजारों में अस्थिरता स्पष्ट हुई।
डाटा से पता चलता है कि पिछले पाँच दिनों में FIIs ने कुल चार बार खरीदारी की, पर औसत मात्रा पहले के 5,000 करोड़ रुपये/दिन के स्तर से कहीं कम रही। इसके सामने DIIs ने लगभग 7,000 करोड़ रुपये की निरंतर खरीदारी की, जो बाजार के समर्थन की भूमिका निभा रही है।
विशेषज्ञों की राय और आगे का मार्ग
"निफ्टी को 25,300 के ऊपर क्लोज़िंग बनाए रखना आज के फैसला‑कारकों में से एक है," कहते हैं बाजार विशेषज्ञ समीरा गुप्ता (इंटरएक्टिव ब्रोकर्स). "यदि यह स्तर टूटता है, तो सपोर्ट‑लेवल खराब हो जाएगा और आगे की बिकवाली तेजी पकड़ सकती है।"
उन्हों ने यह भी बताया कि घरेलू संस्थागत निवेशकों की माँग को देखते हुए, लंबी अवधि में निफ्टी के पुनः उछाल की संभावना मौजूद है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय तनाव को भली‑भांति नियंत्रित करना आवश्यक रहेगा। "निवेशक को अब तरलता प्रबंधित करनी होगी, बड़े‑बाजार में जोखिम को फेफेले गए प्रॉक्सी पर नहीं रखना चाहिए," एक और वित्तीय विश्लेषक केनन मुखर्जी ने कहा।

इतिहास और भविष्य की संभावनाएँ
2025 में अब तक FIIs ने भारतीय बाजारों से कुल 2.38 लाख करोड़ रुपये निकाले हैं, जबकि DIIs ने 5.87 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि विदेशी पूँजी की प्रवाह‑प्रति‑व्यापर का अंतर अब भी मौजूद है, परंतु घरेलू भरोसे की दीवार मजबूत है।
पहले भी जब वैश्विक टैरिफ में उतार‑चढ़ाव हुआ, तो भारतीय बाजार ने दो‑तीन महीने में पुनः स्थिरता पाई। उदाहरण के लिए, 2018 के बाद अमेरिकी ट्रेड वार के दौरान निफ्टी ने 2,500 अंक की गिरावट देखी, परन्तु 2020 से पहले की तुलना में अधिक दृढ़ता दिखाते हुए 2022 में फिर से 25,000 के स्तर को पार किया।
भविष्य में निवेशकों को दो मुख्य संकेतों पर नज़र रखनी चाहिए: (i) FIIs की नेट प्रवाह (खरीद/बेचना) और (ii) अंतर्राष्ट्रीय टैरिफ एवं नीतियों में बदलाव। इन दोनों के साथ यदि निफ्टी 25,300 के रिसिस्टेंस को भेदता है, तो नए बुल़िश सत्र की संभावना बनती है; नहीं तो और बिकवाली का खतरा बना रहेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
FIIs की नेट बिकवाली का मुख्य कारण क्या था?
मुख्य कारण अमेरिकी ट्रम्प राष्ट्रपति द्वारा 1 नवंबर से चीनी वस्तुओं पर 100% अतिरिक्त शुल्क की घोषणा थी, जिसने वैश्विक जोखिम संवेदनशीलता को बढ़ाया और विदेशी फंड्स को भारतीय इक्विटीज़ से बाहर निकलने का प्रेशर दिया।
निफ्टी को 25,300 के ऊपर क्यों बनाये रखना जरूरी है?
25,300 निफ्टी के प्रमुख तकनीकी रेज़िस्टेंस लेवल पर है। यदि इस स्तर को तोड़ा नहीं गया, तो बाजार को त्वरित सपोर्ट नहीं मिलेगा और आगे की बिकवाली तेज़ हो सकती है, जिससे निवेशक क्षति झेल सकते हैं।
DIIs की बढ़ती खरीदारी कैसे बाजार को स्थिर करती है?
DIIs ने 13 अक्टूबर को लगभग 2,200 करोड़ रुपये की नेट खरीदारी की। यह घरेलू पूँजी प्रवाह विदेशी निकासी को संतुलित करता है, जिससे इंडेक्स में गिरावट की मार कम होती है और समर्थन स्तर बनता है।
ट्रेड‑वार के बाद भारतीय शेयर बाजार ने पिछले बार कैसे प्रतिक्रिया दी?
2018‑19 में टैरिफ के त्वरित बदलाव के बाद निफ्टी ने दो‑तीन महीने में 2,500‑3,000 अंक गिरावट देखी, परंतु भारतीय आर्थिक बुनियाद की दृढ़ता के कारण 2020 तक फिर से 25,000 के स्तर को पार कर गया। इतिहास दर्शाता है कि दीर्घकालिक रिटर्न आमतौर पर स्थिर रहता है।
भविष्य में FIIs की प्रवाह‑प्रति‑व्यापर को कैसे मॉनिटर किया जा सकता है?
निवेशक NSE‑NSDL के दैनिक डेटा, CD SL की कस्टोडियल रिपोर्ट और निवेश विश्लेषकों के रीयल‑टाइम अपडेट पर नज़र रख सकते हैं। यह डेटा नेट खरीद‑बिक्री, पूँजी प्रवाह और संभावित जोखिम संकेतकों को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
Prince Naeem
अक्तूबर 14, 2025 AT 00:02बाजार में निवेश का मनोविज्ञान अक्सर आँकड़ों से अधिक जटिल होता है। जब विदेशी फंड्स बड़े पैमाने पर बाहर निकलते हैं, तो यह केवल धन का प्रवाह नहीं, बल्कि विश्वास का अंतरिक्ष बन जाता है। इसी विश्वास की कमी निफ्टी को तकनीकी स्तरों के नीचे धकेल देती है। इतिहास हमें सिखाता है कि हर बड़ी गिरावट के बाद एक पुनरुत्थान का दौर ज़रूर आता है। 2018‑19 के ट्रेड‑वॉर के बाद निफ्टी ने दो‑तीनों महीने में लगभग 2,500 अंक खोए, पर फिर दृढ़ता से वापसी की। आज की स्थिति भी उसी चक्र का निरंतरता है, जहाँ FIIs की बेचैनी ने बाजार को झकझोर दिया है। DIIs की खरीदारियों को एक अस्थायी समर्थन की तरह देखना चाहिए, न कि स्थायी सुरक्षा। यदि निफ्टी 25,300 के प्रतिरोध को पार नहीं कर पाता, तो व्यवस्थित बिकवाली जारी रह सकती है। दूसरी ओर, यदि यह स्तर टूटता है, तो यह साहसी खरीददारियों का संकेत हो सकता है। इस स्तर को समझने के लिए हमें केवल चार्ट नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक वायुमंडल को भी देखना होगा। ट्रम्प की टैरिफ नीतियों ने न केवल चीन को, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पूँजी प्रवाह को भी अस्थिर कर दिया है। इसलिए विदेशी निवेशकों की निराशा का असर भारतीय बाजार पर त्वरित दिखता है। लेकिन भारतीय इक्विटीज़ की मूलभूत ताकत, जैसे मजबूत आय और जनसंख्या, अंततः स्थिरता प्रदान करती है। निवेशकों को चाहिए कि वे अल्पकालिक उतार‑चढ़ाव में घबरा कर अपने पोर्टफोलियो को न खोएँ। दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखकर, पूँजी के चक्रों को समझते हुए ही हम संतुलित रिटर्न हासिल कर सकते हैं।